दोस्तों इन दिनों देश में एक देश एक चुनाव का मुद्दा चर्चा का विषय बन चुका है दरअसल 31 अगस्त को संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने 18 से 22 सितंबर को संसद के विशेष सत्र बुलाए जाने की जानकारी साझा की है। बता दे कि इस विशेष सत्र बुलाए जाने के केंद्र सरकार के निर्णय के अगले ही दिन एक देश एक चुनाव के लिए समिति बनाए जाने की जानकारी सामने आ रही है। जिसके की अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बनाया गया है। तभी से लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने को लेकर चिंतन मंथन का दौर जारी हो चुका है।

बताया जा रहा है की विशेष सत्र में सरकार यह विधेयक पेश कर सकती है, जाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से एक देश एक चुनाव चाहती है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करने के पक्षधर हैं, वह इसका जिक्र भी कर चुके हैं और इसे भारत की जरूरत भी बता चुके हैं।
अगर बात की जाए देश के स्वतंत्र होने के बाद पहली बार 1952 में ही यह चुनाव हुए थे, तब आम चुनाव लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी एक साथ चुनाव हुए थे इसके 5 वर्षों बाद 1957 में भी ऐसा ही हुआ हालांकि तब राज्यों के पुनर्गठन या राज्यों के बनने के कारण 76% राज्यों के चुनाव लोकसभा के साथ ही हो गए थे, परंतु एक साथ चुनाव का यह सिलसिला पहली बार तब टूटा जब 1959 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अनुच्छेद 356 का उपयोग करते हुए केरल की Evm नंबूदरीपाद की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद फरवरी 1960 में केरल में फिर से विधानसभा चुनाव हुआ इस प्रकार देश के किसी भी राज्य में मध्य अवधि चुनाव का यह पहला मामला सामने आया था, हालांकि इसके बाद 1962 और 1967 में भी लोकसभा के साथ 67% राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव एक साथ ही हुए थे।

जर्मनी, हंगरी, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, स्पेन, स्लोवेनिया, अल्बानिया, पोलैंड और बेल्जियम जैसे देशों में एक ही बार चुनाव कराने की परंपरा है। पिछले दिनों स्वीडन ने भी एक साथ अपने चुनाव कराए थे, जिसके बाद ये भी उन देशों की लिस्ट में शामिल हो गया जो ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के फॉर्मूले पर चल रहे हैं।
प्रमुख चुनौतियां
1 देश में एक चुनाव को लागू करने के लिए सभी राजनीतिक दलों और सभी राज्य सरकारों की सहमति होना आवश्यक होती है।
2 Evm को रखने के लिए भंडार गृह की जरूरत दोगुनी हो जाएगी जो समस्या का कारण बन सकती है।
3 एक साथ चुनाव कराने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता भी होगी।
4 अतिरिक्त मतदान कर्मियों और सुरक्षा बलों की जरूरत होगी जिससे राज्यों पर दबाव पड़ेगा
5 यदि देश में एक देश एक चुनाव लागू होता है तो इसके लिए संविधान के पांच अनुच्छेदों 83,85,172, 174, और 356 में संशोधन करना होगा अनुच्छेद 83 संसद के दोनों सदनों के कार्यकाल 85 राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग करने 172 राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल 174 राज्य विधानसभाओं को भंग करने और अनुच्छेद 356 राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने से संबंधित है।
6 बता दें कि इस कार्य के लिए अतिरिक्त Evm वीवीपैट की आवश्यकता होगी इस समय देश में 10 लाख मतदान केंद्र है, यदि पूरे देश में विविपेट सिस्टम प्रयोग किया जाता है, तो एक साथ चुनाव कराने के लिए दोगुनी बिबिपेट की आवश्यकता होगी, इस प्रकार एक साथ चुनाव कराने के लिए वीवीपीएटी की खरीद पर ₹9284 करोड़ से अधिक रुपया खर्च करना होगा ।

अब हम आपको बताते हैं कि आने वाले दिनों में देश में कुछ महीनो के अंतराल पर अलग-अलग राज्यों में चुनाव होते हैं और आचार संहिता लागू होने के कारण विकास कार्य बाधित होता है, विकास कार्यों के निर्वध चलते रहने के लिए एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर गहन विचार विमर्श और अध्ययन आवश्यक है। केंद्र सरकार राज्य सरकार सभी दलों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर इस बात पर सर्व सहमति बननी चाहिए कि राष्ट्र को एक देश एक चुनाव की आवश्यकता है या नहीं यहां दल से ऊपर उठकर देश क्षेत्र में विचार करने की जरूरत है।
बता दे कि Aiadmk, असम गण परिषद, iuml, बीजू जनता दल समेत अनेक दल एक देश एक चुनाव के समर्थन में है।