झारखंड राज्य की शैक्षणिक और लोकतांत्रिक परंपरा में विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता, पारदर्शिता, और छात्र सहभागिता का विशेष महत्व रहा है। हाल ही में झारखंड सरकार द्वारा प्रस्तावित झारखंड विश्वविद्यालय संशोधन अधिनियम 2025 ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था, विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र अधिकारों को लेकर गंभीर चिंता पैदा की है। यह अधिनियम न केवल विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता को प्रभावित करता है, बल्कि छात्र संघों की लोकतांत्रिक भूमिका, नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता और विश्वविद्यालयों के प्रशासनिक ढांचे को भी कमजोर करता है।
हम, आदिवासी छात्र संघ (ACS) केंद्रीय समिति की ओर से, इस अधिनियम के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराते हैं और राज्य सरकार से इसे वापस लेने की मांग करते हैं।
मुख्य आपत्तियाँ और तर्क
रजिस्ट्रार की नियुक्ति JPSC से नहीं, राज्यपाल द्वारा
संशोधित अधिनियम के अनुसार, अब विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार की नियुक्ति झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) के माध्यम से न होकर सीधे राज्यपाल द्वारा की जाएगी। यह व्यवस्था नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता को खत्म करती है और राजनीतिक हस्तक्षेप के खतरे को बढ़ाती है। JPSC जैसी संवैधानिक संस्था का दखल हटाने से योग्य और निष्पक्ष उम्मीदवारों की नियुक्ति की संभावना कम हो जाती है। इससे विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर गहरा असर पड़ेगा।

कुलपति की अधिकतम उम्र सीमा 70 वर्ष एवं नियुक्ति में राज्य सरकार की भूमिका खत्म।
संशोधन के तहत कुलपति पद के लिए अधिकतम उम्र सीमा 70 वर्ष निर्धारित की गई है और नियुक्ति प्रक्रिया में राज्य सरकार की भूमिका सीमित कर दी गई है। इससे युवा शिक्षाविदों और नई सोच वाले नेतृत्व को अवसर नहीं मिलेगा। विश्वविद्यालयों को नई ऊर्जा, नवाचार और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जो केवल वरिष्ठता के आधार पर नहीं, बल्कि योग्यता और दूरदृष्टि के आधार पर सुनिश्चित किया जा सकता है।
छात्र यूनियन की जगह स्टूडेंट काउंसिल ।
छात्र यूनियन केवल एक संगठन नहीं, बल्कि छात्रों की आवाज़, उनके अधिकारों और समस्याओं का प्रतिनिधित्व करने वाला लोकतांत्रिक मंच है। छात्र संघ चुनाव कराना विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है। “छात्र काउंसिल” जैसी अपारदर्शी और गैर-राजनीतिक निकायों से छात्रों की लोकतांत्रिक भागीदारी नहीं हो सकती। इससे छात्रों की समस्याएँ और उनके मुद्दे हाशिये पर चले जाएंगे। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करना किसी भी स्वस्थ शैक्षणिक वातावरण के लिए घातक है।
सभी नियुक्तियाँ एक चयन समिति द्वारा ।
संशोधित अधिनियम के अनुसार, विश्वविद्यालयों में सभी प्रमुख नियुक्तियाँ एक ही चयन समिति द्वारा की जाएंगी। इससे नियुक्तियाँ केवल सत्ता के निकट लोगों तक सीमित हो सकती हैं, जिससे विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और प्रशासनिक माहौल पर नकारात्मक असर पड़ेगा। पारदर्शिता और योग्यता की जगह सिफारिश और पक्षपात को बढ़ावा मिलेगा, जो शिक्षा व्यवस्था के लिए नुकसानदेह है।

हमारी स्पष्ट माँगें ।
विश्वविद्यालय अधिनियम 2025 के विवादास्पद प्रावधानों को वापस लिया जाए।
विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता, पारदर्शिता और निष्पक्षता को बरकरार रखने के लिए यह आवश्यक है कि संशोधित अधिनियम के उन प्रावधानों को तुरंत वापस लिया जाए, जो प्रशासनिक और शैक्षणिक स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं।
छात्र संगठनों से विचार-विमर्श कर नया अधिनियम तैयार किया जाए।
किसी भी नए अधिनियम को लागू करने से पहले छात्रों, शिक्षकों, विश्वविद्यालय प्रशासन और अन्य हितधारकों से व्यापक चर्चा और सुझाव लिए जाएँ। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी से ही सभी पक्षों के हितों की रक्षा हो सकती है।
छात्र यूनियन को बहाल कर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कायम रखा जाए।
छात्र संघ चुनाव को अनिवार्य बनाया जाए और “छात्र काउंसिल” जैसी अपारदर्शी व्यवस्था को समाप्त किया जाए। छात्र संघ ही छात्रों की असली आवाज़ और प्रतिनिधित्व का माध्यम है।
विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में पारदर्शिता और योग्यता को प्राथमिकता दी जाए।
सभी नियुक्तियों में JPSC जैसी संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका सुनिश्चित की जाए, जिससे योग्य और निष्पक्ष उम्मीदवारों का चयन हो सके।
यदि सरकार हमारी माँगों को अनसुना करती है और विवादास्पद अधिनियम को लागू करती है, तो इससे न केवल विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुँचेगा, बल्कि छात्रों, शिक्षकों और समाज में असंतोष और अविश्वास की भावना भी बढ़ेगी। ACS राज्यव्यापी विरोध आंदोलन शुरू करेगा, जिसकी पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।
झारखंड विश्वविद्यालय संशोधन अधिनियम 2025 राज्य की शिक्षा व्यवस्था, विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र अधिकारों के लिए गंभीर खतरा है। विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता, पारदर्शिता, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने वाले किसी भी कदम का पुरजोर विरोध किया जाएगा। हम सरकार से अपील करते हैं कि वह छात्रों, शिक्षकों और समाज के हित में इस अधिनियम को वापस ले और सभी संबंधित पक्षों से संवाद कर नया, पारदर्शी और लोकतांत्रिक अधिनियम तैयार करे।