मरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) बचाओ संघर्ष समिति की ओर से दर्जा प्राप्त मंत्री और झामुमो के वरिष्ठ नेता फागु बेसरा ने राजभवन में राज्यपाल को ज्ञापन सोपा और उन्होंने बताया की पीरटांड, गिरिडीह (झारखण्ड) संथाल आदिवासियों का धार्मिक तीर्थ स्थल है। सम्पूर्ण पहाड़ को मरांग बुरू ईश्वर के रूप में युगों-युगों से प्राचीन काल से पूजा करते आ रहे हैं।
पर्वत के चोटी में युग-जाहेर थान (सरना) अवस्थित है तथा तलहटी में दिशोम माँझी थान अवस्थित है।
साल में इन पूजा स्थलों में दो बार महत्वपूर्ण बोंगा पूजा महोत्सव का आयोजन होता है। फागुन शुक्ल पक्ष तृतीय तिथि में मरांग बुरू युग जाहेर दिशोम बाहा पूजा महोत्सव का आयोजन होता है।
युग-जाहेर थान (सरना) स्थल में अपनी रूढ़ीवादी प्रथागत पूजा पद्दति बकरा एवं मुर्गा का बलि दिया जाता है एवं चावल का हडियां का तपन चढ़ाया जाता है।
वैशाख पूर्णिमा में धार्मिक शिकार सेन्दरा एवं लॉ-बीर वैसी का आयोजन होता है। जिसमें सम्पूर्ण मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में धार्मिक शिकार सेन्दरा एवं लॉ-बीर वैसी का आयोजन होता है।
धार्मिक शिकार सेन्दरा के तहत बीमार कमजोर वन्य जीव प्राणी शिकार सेन्दरा का पराम्परा है।


लॉ-बीर वैसी में सेन्दरा डेरा में आपसी विवाद माँझी परगना का समाधान करने का रीवाज है। छोटानगपुर टेनेन्सी एक्ट 1908 सर्वे भूमि अधिकार अभिलेख में मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पर है।
कमीश्नरी कोर्ट में संथाल आदिवासियों के उक्त रीवाज पराम्परा को जैन समुदाय के द्वारा चुनौती दी गई थी। वर्ष 1911 में कमीश्नरी कोर्ट ने जैन समुदाय के दावे चुनौती को खारिज कर दिया। जैन समुदाय के लोगों ने पटना हाई कोर्ट में अपील की वर्ष 1917 में पटना हाई कोर्ट ने भी जैन समुदाय के दावे एवं अपील को खारिज करते हुए संथाल आदिवासियों को प्रथागत अधिकार (Customary Right) को बरकरार रखा। पूनः जैन समुदाय ने प्रीवी कौन्सील Privy Council में अपील किया, प्रीवी कौन्सील ब्रिट्रीश हुकूमत काल उस समय सुप्रीम कोर्ट समकक्ष न्यायर्यालय ने जैन समुदाय के दावे को खारिज करते हुए संथाल आदिवासियों के प्रथागत अधिकार (Customary Right) को मान्यता दिया है।

परन्तु केन्द्र एवं राज्य सरकार एक तरफा जैन समुदाय के दबाव में मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पर जैन समुदाय के पक्ष में समेद शिखर जैन समुदाय का धार्मिक स्थल घोषित कर माँस मदीरा के सेवन एवं खरीद-बिक्री पर प्रतिबन्ध, भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय संशोधन मेमोरंडम पत्र F.No 11-584/2014-WL दिनांक 05 जनवरी 2023 एवं झारखण्ड सरकार पर्यटन, कला, संस्कृति विभाग के पत्रांक 1391, दिनांक 22.10.2016 एवं विभागीय पत्रांक 14/2010-1995 दिनांक 21.12.2022 के तहत जैन समुदाय के पक्ष में दिशा-निर्देश से संथाल आदिवासियों के रीति-रीवाज, खान-पान, पूजा पद्दति बलि प्रथा एवं धार्मिक शिकार सेन्दरा प्रथागत अधिकार (Customary right) प्रभावित हो रहा है।
जैन समुदाय धनी एवं सम्पन्न लोग है। केन्द्र एवं राज्य सरकार को गुमराह कर गरीब वर्षों से उपेक्षित संथाल आदिवासियों को प्रथागत अधिकार से वंचित करने का साजिश किया जा रहा है। अतः हम सभी संथाल समुदाय झारखण्ड सरकार से माँग करते हैं कि :-
संथाल समुदाय कि माँगें:-
1) मरांग युरू (पारसनाथ पर्वत) पीरटांड, गिरिडीह (झारखण्ड) युगों-युगों से प्राचीन काल से हम संथाल समुदाय “मरांग बुरू” को ईश्वर के रूप में पूजा करते आ रहे हैं। छोटानगपुर कश्तकारी अधिनियम 1908, सर्वे भूमि अधिकार अभिलेख, कमीश्नरी कोर्ट, पटना हाई कोर्ट एवं प्रीवी कौन्सील कोर्ट से संथाल आदिवासियों को प्रथागत अधिकार (Customary right) प्राप्त है।
झारखण्ड सरकार से माँग है कि मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) को संथालों का धार्मिक तीर्थ स्थल घोषित किया जाए।
2) भूमि एवं धार्मिक स्थल संविधान के अनुसार राज्यों का विषय है। झारखण्ड सरकार से माँग है कि आदिवासियों के धार्मिक स्थल मरांग बुरु, लुगू बुरू, अतु/ग्राम, जाहेर थान (सरना), माँझी थान, मसना, हडगडी आदि धार्मिक स्थल की रक्षा के लिए आदिवासी धार्मिक स्थल संरक्षण अधिनियम बनाया जाए।
3) भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय संशोधन नेमोरंडम पत्र F.No 11-584/2014-WL दिनांक 05 जनवरी 2023 एवं झारखण्ड सरकार पर्यटन, कला, संस्कृति विभाग के पत्रांक 1391, दिनांक 22.10.2016 एवं विभागीय पत्रांक 14/2010-1995 दिनांक 21.12.2022 का दिशा-निर्देश जिसमें माँस मदीरा कि सेवन एवं खरीद-बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है। नरांग बुरू (पारसनाथ पहाड़) को सिर्फ जैन समुदाय का सम्मेद शिखर विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल का उल्लेख किया गया है। जो जैन समुदाय के पक्ष में एक तरफा एवं असंविधानिक आदेश है। उसे रद्द किया जाए।
4) मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) संथालों आदिवासियों के धार्मिक तीर्थ स्थल को सुप्रीम कोर्ट केश संख्या 180/2011 एवं अनुसूचित जनजाति और अन्य पराम्परागत यन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के धारा 3 के तहत सामुहिक वन भूमि अधिकार के तहत संरक्षण, प्रबंधन, निगरानी, नियंत्रण एवं अनुश्रवण की जिम्मेवारी वहाँ के आदिवासियों के ग्राम सभा को सौपा जाए।
5) अनुसूचित जनजाति और अन्य पराम्परागत वन निवासी (यन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 सम्पूर्ण देश में लागू है। परन्तु बिना ग्राम सभा के सहमति से भारत सरकार पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधिसूचना संख्या 2795 (अ) दिनांक 02 अगस्त 2019 के तहत मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) को पारिस्थितिकी संवेदी जोन (Eco Sensitive Zone) घोषित किया गया है। जो असंविधानिक है।
केन्द्र एवं राज्य सरकार से माँग है कि इसे रद्द करते हुए मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) पर संथाल आदिवासियों के प्रथागत अधिकार (Customary right) को संरक्षित किया जाए।
6) मरांग बुरू युग जाहेर, बाहा-बोंगा पूजा महोत्सव फागुन शुल्क पक्ष तृतीय तिथि को राज्यकीय महोत्सव घोषित किया जाए।
7) मरांग बुरू (पारसनाथ पर्वत) में जैन समुदाय के द्वारा वन भूमि पर अवैध ढंग से मठ-मंदिर, धर्मशाला आदि निर्माण किया गया है, अवैध ढंग से निर्माण को अतिक्रमण से मुक्त किया जाए।
