रांची के धुर्वा क्षेत्र के निलंचल पहाड़ी पर स्थित जगन्नाथपुर मंदिर, धार्मिक आस्था, ऐतिहासिक गौरव और झारखंड के सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। 1691 ई में नागवंशी राजा अनिनाथ शाहदेव द्वारा स्थापित यह मंदिर, न केवल पूजा का स्थान है, बल्कि एक विरासत है जो अभी भी झारखंड की आदिवासी संस्कृति, नागवंशी शासन की दृष्टि और आज भी समावेशी परंपराओं को जीवित रख रही है। यह मंदिर ओडिशा में पुरी जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है, लेकिन इसकी आत्मा झारखंड की मिट्टी और लोक परंपराओं के साथ गहराई से जुड़ी हुई है।

रथ यात्रा जगन्नाथपुर मंदिर, धुरवा, रांची से शुरू होती है और लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित मौसिबरी (गुंडचा मंदिर) में जाती है। इस मौसीबरी को भगवान जगन्नाथ की चाची का घर माना जाता है, जहां वे नौ दिनों के लिए आराम करते हैं।। प्रभु की ऐतिहासिक और दैवीय यात्रा के लिए हर साल विशेष तैयारियां की जाती हैं। इस साल भी राँची में रथयात्रा की पूरी तैयारी है।आज दोपहर बाद मुख्य मंदिर से प्रभु जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की भव्य रथयात्रा निकलेगी।
