विधानसभा चुनाव के लिए पार्टियां कमर रही हैं कस चुनावी मैदान में शह-मात का हो गया है खेल।

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विधानसभा चुनाव के लिए पार्टियां कमर कस चुकी है. चुनावी मैदान में शह-मात का खेल हो गया है. चुनावी बयार को अपने पक्ष में करने के लिए संभावित प्रत्याशी से लेकर पार्टियां लगी है.

विधानसभा क्षेत्र की राजनीतिक पृष्ठभूमि, विधानसभा के एजेंडे, आम लोगों की समस्या सहित कई पहलुओं पर आधारित खास रिपोर्ट. आज पढ़िए बिशनपुर विधानसभा क्षेत्र की रिपोर्ट.

बॉक्साइट का खजाना भी नहीं मिटा पा रहा है गरीबी, बेरोजगारी और पलायन:-


1977 में बनी अनुसूचित जनजाति सीट बिशुनपुर विधानसभा से अब तक क्षेत्र की जनता ने 10 विधायकों का चयन किया है. सीट पर उरांव और भगत जाति के विधायकों का सबसे ज्यादा कब्जा रहा. बिशुनपुर के पहले विधायक कांग्रेस के कार्तिक उरांव थे. यहां चार बार कांग्रेस और तीन बार भाजपा के विधायक का कब्जा रहा है. कांग्रेस के स्व भुखला भगत सबसे अधिक तीन बार विधायक चुने गये थे, जबकि भाजपा के स्व चंद्रेश उरांव दो बार विधायक रहे. लेकिन, पिछले 15 सालों में यह सीट झामुमो के चमरा लिंडा का गढ़ बन चुकी है. सीट से तीन बार जीत हासिल कर चुके चमरा चौथी बार चुनावी दंगल में होंगे. वर्तमान में यह सीट झामुमो के खाते में है. लेकिन इस बार चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस भी ताल ठोक रही है. बिशुनपुर सीट से अब तक एक भी महिला विधायक नहीं चुनी गयी है, जबकि कई महिला उम्मीदवार इस सीट से किस्मत आजमा चुकी हैं।



कई समस्याओं का समाधान नहीं हो सका पलायन क्षेत्र की पहचान है. बिशुनपुर और घाघरा से हर साल बड़ी संख्या में लोग काम की तलाश में पलायन कर जाते हैं. बॉक्साइट नगरी होने के बाद भी गरीबों से ज्यादा पूंजीपतियों व नेताओं को इसका लाभ मिलता रहा है. इलाके के गांवों की स्थिति अत्यंत खराब है. प्रशासनिक पदाधिकारी तो दूर क्षेत्र के कई गांवों मेंविधायक तक कभी नहीं गये हैं.

तैयारी में जुटे राजनीतिक दल बिशुनपुनर में भाजपा विपक्षी पार्टियों से जोर-आजमाइश के लिए तैयार है. आजसू, राजद, लोजपा और बसपा सहित अन्य पार्टियों का बिशुनपुर में कोई खास प्रभाव नहीं है. लेकिन झामुमो के चमरा लिंडा के साथ कांग्रेस

भी चुनावी तैयारी में कसर नहीं छोड़ रही है. गुजरे डेढ़ दशक में क्षेत्र में कांग्रेस का वोट बैंक जरूर कम हो गया है, लेकिन पार्टी की मजबूत उपस्थिति बनी हुई है. गठबंधन में सीट झामुमो को मिले या कांग्रेस को, लेकिन मुकाबला सीधा भाजपा से होना तय है.

रोजगार के मुद्दे पर चुप रहे विधायक : दीनबंधु घाघरा के दीनबंधु मांझी ने कहा कि पिछले पांच साल में क्षेत्र में विकास के नाम पर कुछ – भी चीज नहीं दिखती है. कई ऐसी सड़कें हैं, जिनमें पैदल चलना तक मुश्किल हो गया

बीमार अवस्था में अस्पताल ले जाने में काफी परेशानी होती है. क्षेत्र में मुख्य समस्या

सुदूरवर्ती इलाकों में सड़क, पुल, बिजली व शिक्षा की है.

मांदर-नगाड़ा बांटने में नंबर वन विधायक : सोम

घाघरा के सोम उरांव ने कहा कि पिछले पांच साल में विधायक मद से सिर्फ और सिर्फ कहीं-कहीं अखाड़ा में लाइट लगायी गयी है. सरहुल और करमा पर मांदर व नगाड़ा का वितरण किया जाता है. क्षेत्र की जनता यह सोचकर परेशान है कि हमारे बच्चे का भविष्य क्या होगा. शिक्षा स्तर कैसे बढ़ेगा, पलायन कैसे रुकेगा, हमारे बच्चों को रोजगार कैसे मिलेगा, इन सभी मुद्दों पर अभी तक विधायक ने इस क्षेत्र में कुछ भी काम नहीं किया है. सिर्फ चुनाव के समय आदिवासियों को बरगलाकर वोट लेने का काम करते रहे हैं.

टोटो को प्रखंड बनाने की मांग अधूरी : प्रमोद

गुमला के टोटो निवासी प्रमोद गुप्ता ने कहा है कि हमारा इलाका बिशुनपुर विधानसभा में आता है. टोटो को लंबे समय से प्रखंड बनाने की मांग हो रही है और चमरा लिंडा इस क्षेत्र में 15 साल तक विधायक रहे. वह कभी भी टोटो को प्रखंड बनाने की दिशा में पहल करते नजर नहीं आये. न ही इस क्षेत्र के विकास के लिए आम जनता के साथ बैठक की. टोटो के लोगों ने कभी भी चमरा लिंडा को इस क्षेत्र में घूमते भी नहीं देखा है. आज भी कई गांवों में जाने के लिए सड़क नहीं है. इस बार जो भी विधायक बनें, टोटो को प्रखंड बनाने की पहल करें.

बिशनपुर की समस्या:-

घाघरा प्रखंड में एल्यूमीनियम कारखाना की स्थापना अब तक नहीं हो सकी है.

बिशुनपुर से आदिम जनजातियों का पलायन रोकने की पहल नहीं की गयी है.

■ किसानों को सिंचाई की सुविधा नहीं है. बिशुनपुर में करोड़ों की योजना बेकार है.

खेल के क्षेत्र में कोई भी काम नहीं हुआ है. इस क्षेत्र में अच्छा स्टेडियम नहीं है.

टोटो आज तक प्रखंड नहीं बन पाया, जबकि लंबे समय से

आंदोलन हो रहा है.

आदिम जनजाति गांवों के विकास के लिए आज तक कोई योजना नहीं बन सकी.

बिशुनपुर व घाघरा प्रखंड में नल जल योजना फेल है.

स्व कार्तिक उरांव का पैतृक गांव लिटाटोली आज भी विकास के लिए तरस रहा है।

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