पूरे देश भर में परिवारवाद राजनीति का एक अहम हिस्सा रहा है और वैसे में झारखंड भी पीछे क्यों रहे। राजनीति में परिवारवाद का बोलबाला हमेशा से रहा है । चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा दोनों ही चुनाव में एक ही परिवार के सदस्यों को विभाजित राज्य के समय से ही सफलता मिलती रही है। पति-पत्नी और पिता पुत्र या पुत्री की जोड़ियां के चुनावी दंगल में फतह हासिल करने के दर्जनों उदाहरण विभिन्न लोकसभा व विधानसभा क्षेत्र में मौजूद रहे हैं।

मौजूदा लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमा रहे कई प्रत्याशियों के परिजनों को चुनावी दंगल में विजई पताका फहराने का अनुभव हासिल है।
जानकारी के मुताबिक इस बार चुनावी दंगल में जीत हासिल कर पिता के सपनों को पूरा करने वाले बेटे भी है बात करें हजारीबाग लोकसभा से चुनाव लड़ रहे भाजपा के मनीष जायसवाल के पिता बादल जायसवाल ने कई बार चुनाव लड़ा लेकिन जीत हासिल नहीं कर सके, बता दे कि मनीष जायसवाल भी पिता के रास्ते पर चुनाव लड़कर पहले विधायक बने और अब लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी हैं, वही डाल्टनगंज के विधायक आलोक चौरसिया के पिता अनिल चौरसिया भी चुनावी विषात पर कभी सफल नहीं हो सके पिता असमय निधन के बाद आलोक चौरसिया ने चुनाव जीतने में सफल रहे ।
राज्य में मां-बाप के बाद बच्चों ने भी राजनीतिक विरासत संभाली है काला हीरा के नाम से मशहूर कार्तिक उराव और उनकी पत्नी सुमति उरांव के बाद उनकी बेटी गीत श्री उड़ाव चुनाव जीती थी अंबा प्रसाद ने अपने पिता योगेंद्र साव व मां निर्मला देवी की सीट बचाई है। वहीं राज्य के संसदीय व विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर पिता की गद्दी संभालने वालों की लिस्ट काफी लंबी है दर्जन भर से अधिक बेटे बेटियां चुनावी दंगल में जीत हासिल कर चुके हैं।
अगर बात करें तो कार्तिक उरांव, सुमति उराव, शैलेंद्र महतो, आभा महतो, मधु कूड़ा, गीता कोड़ा, मनोज भुइया, पुष्पा देवी, योगेंद्र साव, निर्मला देवी, अमित महतो, सीमा देवी, योगेंद्र प्रसाद महतो, बबीता देवी, चंद्र प्रकाश चौधरी, सुनीता चौधरी, सुधीर महतो, सविता महतो, रमेश यादव, अन्नपूर्णा देवी, सुशांतो सेन गुप्ता, अपर्णा सेनगुप्ता, सुनील महतो, सुमन महतो, दुर्गा सोरेन, सीता सोरेन, जगन्नाथ महतो, बेबी देवी शामिल है ।
