2015 वाली JSSC-CGL परीक्षा 2024 तक पहुंचीझारखंड में युवाओं को नौकरी नहीं, मिलती है तारीख पर तारीख

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अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद झारखंड के छात्र नेता दुर्गेश यादव ने कहा झारखंड, राज्य कम दामिनी फिल्म का सेट ज्यादा लगता है। झारखंड में भले ही दामिनी फिल्म की तरह कोर्ट रूम ड्रामा नहीं है लेकिन तारीख पर तारीख जरूर मिलती है। झारखंड में छात्रों की हालत सन्नी देओल और मीनाक्षी शेषाद्री वाली हो गई है। अंतर केवल इतना है कि दामिनी फिल्म में लड़ाई न्याय की थी और यहां नौकरी के लिए है लेकिन नतीजा वही है। मिलती दोनों को तारीख पर तारीख ही है। हालांकि, दामिनी फिल्म 3 घंटे की ही थी और अंत में मीनाक्षी शेषाद्री को न्याय मिल भी जाता है लेकिन झारखंड में छात्रों का संघर्ष दशकों पुराना है। बिचारे लड़ तो रहे हैं, लेकिन नौकरी नहीं तारीख मिल रही है।

दुर्गेश ने बताया की सरकारी नौकरी का वादा और वास्तविक आंकड़ा अलग हमें यह कहने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि झारखंड में सरकारी नौकरी देने का वादा और नौकरी मिलने का वास्तविक आंकड़ा परेशान करता है। वैसे सरकार तो डंके की चोट पर कहती है कि हमने 1 लाख नौकरी दी। 2 लाख और देंगे लेकिन युवा इससे इत्तेफाक नहीं रखते। सच पूछिए तो रखना भी नहीं चाहिए। रांची सहित आसपास के शहरों में दबड़ेनुमा कमरों में तहड़ी और माड़ भात खाकर सुनहरा भविष्य गढ़ने का ख्वाब देख रहे छात्र-छात्राओं को इंतजार जेपीएससी और जेएसएससी परीक्षाओं का रहता है न कि 8 हजार की पगार पर विशाखापट्टनम जाने वाली नौकरी का।

छात्र नेता दुर्गेश यादव ने कहा की सरकार स्वरोजगार देने का राग अलापती रहे लेकिन इस सच्चाई से कैसे मुंह मोड़ेगी कि झारखंड के सरकारी विभागों में पौने 4 लाख से ज्यादा पद खाली हैं। आज बात झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित होने वाली प्रतियोगिता परीक्षाओं की करेंगे। उसमें भी हमारा फोकस जेएसएससी सीजीएल की परीक्षा पर होगा। दरअसल, झारखंड प्रदेश में हर ग्रेजुएट की अभिलाषा जेएसएससी सीजीएल की परीक्षा में किस्मत आजमाने की होती है लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि 2015 में निकले विज्ञापन की परीक्षा 2024 में प्रवेश करने वाली है। 9 साल से छात्रों के हिस्से केवल विज्ञापन और परीक्षा की संभावित तिथियां ही आई है।

2015 में ही जारी हुआ था जेएसएससी-सीजीएल का विज्ञापन
रघुवर दास के कार्यकाल में साल 2015 में जेएसएससी सीजीएल का विज्ञापन जारी हुआ था। आयोग ने कहा कि 21 अगस्त 2018 को परीक्षा ली जाएगी। एडमिट कार्ड डाउनलोड करने की अधिसूचना तक जारी की जा चुकी थी, लेकिन परीक्षा हुई नहीं। 2017 में फिर विज्ञापन जारी हुआ। आयोग ने कहा कि हम फरवरी और मार्च 2018 में कभी भी परीक्षा ले लेंगे। छात्र उत्साहित थे लेकिन उत्साहित नहीं रह सके। परीक्षा नहीं हुआ। कारण, अपरिहार्य ही था। अब तो यह शोध का विषय होना चाहिए कि झारखंड के सरकारी नौकरी के सिस्टम में यह अपरिहार्य क्या माजरा है। छात्रों की उम्मीद टूट जाने की वजह अक्सर यही होता है।

साल 2019 में रघुवर दास जी के कार्यकाल में ही फिर से जेएसएससी सीजीएल परीक्षा का विज्ञापन निकला।


आयोग बोला हम नवंबर-दिसंबर महीने में कभी भी परीक्षाएं ले लेंगे। कमर कस लीजिए। छात्रों ने कस ली लेकिन परीक्षा फिर भी नहीं हुई। दिसंबर 2019 में हेमंत सोरेन सरकार सत्ता में आई। 2020 में नई नियुक्ति नियमावली आई। 2021 को नियुक्ति वर्ष घोषित किया गया। 2021 में जेएसएससी सीजीएल परीक्षा का विज्ञापन जारी किया गया। अप्रैल के अंतिम सप्ताह में परीक्षा की संभावित तिथि घोषित की गई। फिर संशोधित कैलेंडर जारी हुआ। आयोग ने कहा कि अब परीक्षा मई के अंतिम सप्ताह में लेंगे।

21 अगस्त 2022 को परीक्षा फिर से अपरिहार्य कारणों से रद्द कर दी गई।


फिर जेएसएससी सीजीएल परीक्षा-2021 का संशोधित डेट सामने आया। आयोग ने कहा कि परीक्षा जनवरी 2023 में लेंगे। फिर कहा कि परीक्षा मई के प्रथम सप्ताह में लेंगे। इसके बाद तारीख बढ़कर सिंतबर और फिर 14 से 15 अक्टूबर तक हो गई। संभावित तिथि फिर बदली। अब कहा कि 16 या 17 दिसंबर को परीक्षा लेंगे। उसकी भी उम्मीद कम है। अब तो ऐसा लगता है कि झारखंडी युवाओं की प्लेलिस्ट में एक ही गाना बजता होगा कि इंतजार कब तक हम करेंगे भला।

2015 वाली प्रतियोगिता परीक्षा 2017 तक पहुंच गई है
दुर्गेश ने कहा कि सोचकर देखिए। 2015 में जारी विज्ञापन के आधार पर जो नियुक्तियां अधिकतम 2017 तक हो जानी चाहिए थी उसको 9 साल बीत गए हैं लेकिन नौकरी तो छोड़िए, छात्रों को परीक्षा में बैठना भी नसीब नहीं हुआ। इंतजार। कहने में यह शब्द सेकेंड में खत्म हो जाता है लेकिन यह बहुत लंबा। कितना लंबा मापना मुश्किल है। झारखंड में सरकारी नौकरी का यह इंतजार कभी-कभी कालापानी से भी मुश्किल लगता है। क्योंकि एकबारगी कालापानी से रिहाई संभव है लेकिन झारखंडी युवाओं का यह इंतजार कब खत्म होगा, शायद ईश्वर भी नहीं जानता।
सरकारें वादा करती है। घोषणाएं करती है। बड़े-बड़े मंचों से विश्वास न करने लायक ऐलान हो रहे हैं लेकिन एक अदद प्रतियोगिता परीक्षा सफलता से पूरा कराना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।

छात्र नेता दुर्गेश यादव ने चेतावनी देते हुए कहा की सरकार को समझना होगा कि वादों-घोषणाओं का सेफ्टी वॉल्व ज्यादा दिनों तक काम नहीं करेगा। युवाओं का गुस्सा किसी न किसी दिन गुब्बार बनकर फटेगा। तब बड़ी मुश्किल होगी।

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