झारखंड के रांची जिले के नगड़ी प्रखंड में अवस्थित दलादली परंपरागत रूप से आदिवासियों और गरीबों के ऐतिहासिक संघर्षों की धरती है. साठ के दशक में अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी के समय लाल झंडे के तले इस इलाके के जमींदारों और भूस्वामियों के खिलाफ आदिवासियों द्वारा अपनी जमीन को बचाने के लिए भूतपूर्व सैनिक और युद्ध में अपने पांव गंवाने वाले शुक्रा मुंडा जो शहीद सुभाष मुंडा के दादा थे जिनके नेतृत्व में ही कई बड़े – बड़े संघर्ष हुए थे. इन संघर्षों से ही प्रेरणा लेकर बाद में 70 और 80 के दशक में सीपीएम के झंडे तले रांची के पंचपरगना इलाके में राजेंद्र सिंह मुंडा और शहीद लक्ष्मीकांत स्वांशी के नेतृत्व में महाजनों द्वारा आदिवासियों और गरीबों की जमीन की लूट के खिलाफ भूमि बचाने का काफी तीखा संघर्ष चला था. जिसमें इन दो दशकों में महाजनों द्वारा पोषित अपराधियों ने सीपीएम के 77 किसान कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी थी.
बता दे कि नए राज्य झारखंड के गठन के ठीक पहले दलादली मे हुए भूमि संघर्ष में जमींदारों द्वारा की गयी फायरिंग में सीपीएम के तीन साथी जतरू मुंडा,बलदेव मुंडा शहीद हो गए. इस घटना में आदिवासियों ने भी आत्मरक्षा के लिए तीर – धनुष का इस्तेमाल किया जिसके परिणामस्वरूप जमींदार की भी मौत हो गई. इस घटना में दर्जनों आदिवासियों को अभियुक्त बनाकर जेल भेज दिया गया. जिसमें तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा हुई. इस घटना ने बिहार सै अलग होकर नव गठित होने वाले राज्य हमारे झारखंड का राजनीतिक एजेंडा तय कर दिया कि यहां आदिवासियों और दुसरे गरीबों की भूमि के हिफाजत का सवाल केंद्रीय सवाल है.
शहीद कामरेड सुभाष मुंडा उन्हीं शुक्रा मुंडा की तीसरी पीढ़ी के नौजवान कम्युनिस्ट कार्यकर्ता थे जो अपने दादा की संघर्षशील विरासत के वाहक थे. सुभाष मुंडा रातू – नगड़ी इलाके के लोकप्रिय और संघर्षशील युवा संगठनकर्ता थे. जो जनवादी नौजवान सभा और आदिवासी अधिकार मंच के बैनर तले आदिवासियो और अन्य गरीबों के हक और अधिकार की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते थे.
बताते चले कि उन्होंने दो बार हटिया विधानसभा और एक बार मांडर विधानसभा से चुनाव भी लडा था और जिसमें उन्हें अच्छे मत प्राप्त हुए थे. उस क्षेत्र में आदिवासी जनता के विभिन्न सवालों पर वे लगातार आंदोलन के मैदान में डटे रहते थे. जिसके चलते उस इलाके के निहित स्वार्थी तत्व और आदिवासियों की जमीन हड़पने वाले भू माफियाओं की नजर में खटकने लगे थे. उनकी जधन्य हत्या के बाद उस इलाके के लोगों का आक्रोशित होना इस बात का प्रमाण है कि शहीद सुभाष मुंडा को वहां के लोग कितना मानते थे.