केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष श्री फूलचंद तिर्की ने बयान जारी करते हुए कहा की कुर्मी हुंकार महारैली प्राकृतिक पूजक मूल आदिवासियों का हाकमारी वाला रैली था कुर्मी कभी भी आदिवासी नहीं थे मूल आदिवासियों का हक अधिकार को लुटने के लिए जबरदस्ती कुर्मी कुडमी आदिवासी बनना चाह रहे हैं ।
2024 का चुनाव सामने है एवं कुर्मी कुडमी अनुसूचित जनजाति के आरक्षित सीट पर कब्जा जमाने के लिए हंकार महारैली का आयोजन किए हैं मूल आदिवासियों की परंपरा संस्कृति से कुर्मी कुडमी समाज से कोई मेल नहीं खाता है जन्म संस्कार, विवाह संस्कार ,मृत्यु संस्कार आदिवासी पहन पुजार मांझी परगनईत से कराते हैं एवं कुर्मी जन्म से लेकर मृत्यु संस्कार पंडित के द्वारा संपन्न कराते हैं ।

आदिवासी प्राकृतिक पुजारी हैं एवं जल, जंगल, जमीन, पहाड़ पर्वत नदी तालाब एवं अपने पूर्वजों को पुजते हैं एवं उनका प्रमुख त्योहार सरहुल करम है जबकि कुर्मी कुडमी मूर्ति पूजक होते हैं एवं प्रमुख त्योहार होली, दीपावली, दशहरा आदि को मनाते हैं कुर्मी कुडमी समाज हिंदू धर्म की वर्ण व्यवस्था में आते हैं एवं शिवाजी के वंशज क्षत्रीय में आते हैं जबकि आदिवासी समाज वर्ण व्यवस्था में नहीं आते ,उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज किसी भी हाल में कुर्मी कुडमी को आदिवासी स्वीकार नहीं करेंगे जल्द ही आदिवासी समाज कुर्मी कुडमी को आदिवासी बनने से रोकने के लिए पूरे देश में एक बड़ा आंदोलन करेगी एवं ईट का जबाब पत्थर से देंगें।