डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपए की गिरावट एक बडे आर्थिक संकट की ओर इशारा है. इस आहट को देखकर नकारा नहीं जा सकता. दुनिया के अन्य देशों में आई करेंसी की गिरावट से भारत की तुलना करना बेमानी है. इसका एक बड़ा कारण तो यह है कि आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है और भारत की इकोनॉमी की स्थिरता और विकास का संदर्भ विश्व की जनसंख्या के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि किसी देश की मुद्रा का डॉलर की तुलना में अवमूल्यन, उस देश के लिए फजीहत के साथ ही आम लोगों की परेशानियों का कारण बनकर उभरता है।
डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार गिर रहा है. रुपये की वैल्यू घटकर 86 के पार पहुंच गयी है. पिछले दस वर्षों में डॉलर की तुलना में रुपया 43.60 फीसदी गिर चुका है. रिजर्व बैंक आफ इंडिया के आंकड़े के मुताबिक, 31 दिसंबर 2014 में डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की विनिमय दर 60.32 रूपये थी. जो अभी 86 के पार पहुंच चुकी है. वहीं आजादी से अब तक यानी 78 सालों में डॉलर के मुकाबले रुपया 83.20 कमजोर हुआ है. 1947 में डॉलर की तुलना में रुपये का मूल्य 3.30 था, जो 2025 में 86.50 रुपये हो गया. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि रुपया पाताल लोक की ओर चल दिया है.
भारत में बढ़ती महंगाई से आम आदमी का हाल पहले से ही खस्ता है. सभी चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं, खासकर पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतें. वहीं सोमवार (13 जनवरी) को रुपये में आयी गिरावट के बाद आम आदमी का हाल और बेहाल होने वाला है. क्योंकि कच्चा तेल, आयातित कुलपुर्जे, मोबाइल फोन समेत कई चीजें अभी और महंगी होंगी.
कमजोर रुपये का असर अमीरों पर तो पड़ेगा ही रहा है, लेकिन मीडिल क्लास भी इससे अछूते नहीं हैं. विदेशों में बच्चों की पढ़ाई और भी खर्चीली हो जायेगी. रुपये कमजोर होने के कारण भारत को दूसरे देशों से आयात करने के लिए पहले की तुलना में और ज्यादा पैसे चुकाने पड़ेंगे. हालाँकि अभी भी कुछ कम पैसे नहीं चुकाने पड़ रहे हैं. आयात महंगा होने से कई तरह के सामानों के दाम में और इजाफा होगा. ऐसे तो भारत में पहले ही महंगाई आसमान छू रही है. लेकिन यह कहना ग़लत नहीं होगा कि अब महंगाई आसमान को भी पार कर जायेगी.
यह बात तो आपको पता ही होगी कि भारत कच्चा तेल का सबसे बड़ा आयातक है. यह अपनी जरुरत का 85 फीसदी कच्चा तेल आयात करता है. भारत को कच्चे तेल के लिए पहले से ही ज्यादा पैसे चुकाने पड़ते हैं. अब रुपये में गिरावट आने से भारत को कच्चे तेल के लिए और ज्यादा पैसे देने पड़ेंगे. इससे सरकारी तेल कंपनियों पर मंहगाई का बोझ और बढ़ जायेगा. जिसका बोझ वो पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाकर आम आदमी पर डालेंगे. यानी अब आम लोगों के लिए सस्ता पेट्रोल-डीजल खरीदना सपना रह जायेगा.
रुपये में लगातार आ रही गिरावट के कारण आदमी का जीना पहले से मुहाल है. हर चीज महंगी होने के कारण मुझे और आपको हर चीज़ के लिए अधिक पैसे देने पड़ रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ़ हमारी आय नहीं बढ़ रही है. ऐसे में घर चलाने में परेशानी हो रही है. बच्चों के स्कूल और बस फीस लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. आज कोई भी चीज सस्ती नहीं है. लेकिन 13 जनवरी को रुपये में आयी गिरावट से आने वाले समय में मध्यवर्गीय और गरीबों को और ज़्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.
सीधे तौर पर कहें तो अब खाने की और लालत पड़ेगी. क्योंकि आने वाले दिनों में सभी चीजों की कीमतों में और बढ़ोतरी देखने को मिलेगी.
रुपए में गिरावट का भारत पर प्रभाव:-
1. *इंपोर्ट बिल में बढ़ोतरी : डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने से भारत का इंपोर्ट बिल बढ़ जायेगा. यानी भारत को किसी सामान को खरीदने के लिए अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा.
2. कच्चे तेल की लागत बढ़ेगी : भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल बाहर से इंपोर्ट करता है रुपए की गिरावट से कच्चे तेल की लागत में बढ़ोतरी होगी, जो अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर डालेगी.
3. पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी : रुपए की गिरावट और डॉलर की मजबूती के चलते कच्चा तेल महंगा होगा, जिससे पेट्रोल और डीजल के उत्पादन की लागत बढ़ जायेगी. इसके परिणामस्वरूप इन ईंधनों की कीमतों में इजाफा होगा.
4. इंपोर्टेड सामान महंगा होगा : डॉलर के मुकाबले रुपये के गिरने से विदेशों से आने वाले सामान, जैसे कपड़े, जूते और विदेशी शराब, महंगे हो जायेंगे.
5. विदेश में पढ़ाई महंगी : रुपए की गिरावट का सबसे बड़ा असर विदेश में पढ़ाई करने वाले छात्रों पर पड़ेगा. उन्हें अब डॉलर खरीदने के लिए ज्यादा रुपए खर्च करने होंगे.
6. विदेशी दवाएं महंगी होंगी : विदेशों से आने वाली दवाएं, विशेषकर कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों की, महंगी हो जायेंगी.
7. दालें और खाने का तेल महंगा होगा : रुपए में गिरावट और डॉलर में मजबूती के चलते इंपोर्टेड दालें और खाने का तेल भी महंगे होंगे. इससे खाद्य महंगाई में बढ़ोतरी हो सकती है.
8. विदेशी मुद्रा भंडार में कमी : रुपए की गिरावट से देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी घट रहा है. वहीं पिछले पांच हफ्तों में फॉरेक्स रिजर्व में लगातार कमी देखी जा रही है. तीन जनवरी को यह 5.69 अरब डॉलर कम होकर 634.58 अरब डॉलर रह गया था.