आज राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ के अध्यक्ष श्री संगम उरांव ने देवाड़ी दिरी स्थल के हिंदूकरण की कोशिश की कड़ी आलोचना की। श्री संगम उरांव ने स्पष्ट किया कि यह आदिवासी समुदाय की धार्मिक आस्थाओं का अपमान है और इसे एक राजनीतिक चाल भी बताया। उन्होंने कहा कि यह कदम पूरी तरह से राजनीतिक और सांस्कृतिक शोषण का प्रतीक है। भाजपा और आरएसएस द्वारा यह कदम आदिवासी समाज को धार्मिक रूप से भ्रमित करने और अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करने की योजना है।
राष्ट्रीय आदिवासी छात्र संघ का मानना है कि भाजपा और संघ परिवार आगामी चुनावों में आदिवासी वोटरों को साधने के लिए आदिवासियों के धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों का दुरुपयोग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा का पहला लक्ष्य आदिवासी वोटरों को गोलबंद करना है, दूसरा, हिन्दू समुदाय के हाशिए पर रहने वाले लोगों को अपने पक्ष में करना, और तीसरा, आदिवासी बहुल इलाकों में अपने चुनावी लाभ के लिए आदिवासी समुदाय को विभाजित करना है। यह रणनीति इसलिए अपनाई जा रही है क्योंकि भाजपा को झारखंड में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में आदिवासी सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा है।
इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए झारखंड में कई आदिवासी धार्मिक स्थलों पर कब्ज़ा किया जा रहा है। सरना धार्मिक स्थलों का हिंदूकरण हो रहा है, जिनमें शामिल हैं:
1. *फस्सी टुंगरी* – पहाड़ी मंदिर
2. *रजरप्पा जाहेरथान* – रजरप्पा मंदिर
3. *पारसनाथ* – पारसनाथ धाम
4. *देवाड़ी दिरी* – देवाड़ी मंदिर
5. *सुइताम्बे मुंडाहर पहाड़* – सुइताम्बे मंदिर
6. *सीरा सीता नाले* – सीता धाम
7. *लुंगु बुरु* – लुंगुबुरु धाम
8. *सोनमेर*
9. *टांगीनाथ*
10. *देवाकी*
श्री संगम उरांव ने कहा कि भाजपा आदिवासियों को बहकाकर उन्हें गुलाम बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन यह रणनीति सफल नहीं होगी, क्योंकि आदिवासी समाज अब जागरूक हो चुका है। भाजपा और आरएसएस के इन प्रयासों का कड़ा विरोध किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की संस्कृति और पहचान पर हो रहे इन हमलों का सामना किया जाएगा और उन्हें किसी भी राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल नहीं करने दिया जाएगा।
श्री संगम उरांव ने आदिवासी समाज को यह भी आगाह किया कि सांसद सुखदेव भगत जैसे नेताओं को भी पहचानने की ज़रूरत है, जो अपने आप को हिंदू ब्राह्मण मानते हैं और हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार पंडितों से पूजा-पाठ करते हैं। उन्होंने झारखंड सरकार के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव पर भी निशाना साधते हुए कहा कि वे ‘दोना-दो पर कोना नहीं’ की नीति अपनाते हैं, जबकि उनके परिवार में बाहरी लोगों से बेटी-रोटी का रिश्ता है उनका दामाद बाहरी गैर आदिवासी है और बहू भी गैर आदिवासी है।
उन्होंने हेमंत सोरेन की पत्नी, कल्पना सोरेन का भी उल्लेख किया, जो हिंदू रीति से अपने आवास के मंदिर में रोज़ पूजा करती हैं, लेकिन अपने आवास में सरना स्थल बनाने में शर्म महसूस करती हैं इन के जैसे लोग पूरे झारखंड में भरे पड़े हैं जो बाहर से अपने आप को आदिवासी बोलते हैं पर तन और मन से हिंदू हैं और बहरी समर्थक। ऐसे नेताओं को दोगला करार देते हुए श्री संगम ने कहा कि ये नेता सिर्फ आदिवासी आरक्षण का लाभ उठाते हैं, लेकिन आदिवासियों की भलाई में रुचि नहीं रखते। इन सब कारणों से आरएसएस और भाजपा का मनोबल बढ़ रहा है।
आदिवासी समाज को अपने बीच के इन “जयचंदों” से भी सावधान रहना होगा और इनके खिलाफ भी मोर्चा खोलना होगा।