25 मई 2025 को ‘‘आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद्’’ के तत्वावधान में ‘‘पेसा नियमावली महासम्मेलन’’ का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए पड़हा राजा परगनादार सनिका भेंगरा ने कहा कि हमारे पूर्वजों की अत्याधिक त्याग के बाद यह भू-भाग हमें मिला है, जहां हमारी अपनी ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ है, जिसे ब्रिटिश हुकूमत ने भी स्वीकार किया था और संविधान में ‘‘पांचवीं और छठवीं अनुसूची’’ के रूप में जगह मिला। लेकिन आज हमारी सरकार ही इसे दरकिनार कर रही है। झारखंड के ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों’’ में अबतक ‘‘पेसा कानून 1996’’ लागू नहीं होना दुःखद है। सरकार ‘‘पेसा नियमावली’’ बनाने में विफल हो चुकी है इसलिए आज हमें ‘‘धर्म और समुदाय’’ के नाम पर लड़ाया जा रहा है। इसलिए अब हमें स्वंय ही ‘‘पेसा नियमावली’’ बनाना पड़ेगा।

आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद् के अध्यक्ष ग्लैडसन डुंगडुंग ने कहा कि झारखंड सरकार विगत तीन वर्षों से ‘‘पेसा नियमावली’’ बना रही है लेकिन अबतक के तीन प्रारूपों से स्पष्ट है कि सरकार ‘‘पेसा कानून 1996’’ के 23 ‘‘प्रावधानों’’ को ‘‘अपवदों एवं उपांरतणों’’ के साथ लागू करने के बजाय राज्य के ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों’’ में विगत 24 वर्षों से असंवैधानिकरूप से लागू किये गये ‘‘जेपीआरए 2001’’ को ही लागू करना चाहती है। यह ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’, संविधान के ‘‘अनुच्छेद 13(3)(क)’’ एवं ‘‘पेसा कानून 1996’’ की धारा – 3 का गंभीर उल्लंघन है।

पड़हा राजा सनिचराय संगा ने कहा कि ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ हमारे पूर्वजों की देन है जो मानव की उत्पति के साथ आया है। लेकिन अब ‘‘जेपीआरए 2001’’ के द्वारा हमारे उपर ‘‘पंचायत व्यवस्था’’ थोपने की कोशिश की जा रही है। हमें ‘‘पेसा कानून 1996’’ के 23 प्रावधान चाहिए। ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ से ही हम आदिवासियों का अस्तित्व बचेगा।

आदिवासी क्षेत्र सुरक्षा परिषद् की महासचिव सुषमा बिरूली ने कहा कि पंचायत व्यवस्था हमारा नहीं है बल्कि हम आदिवासी लोग ‘‘रूढ़ि प्रथा पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ से संचालित होते हैं। लेकिन झारखंड सरकार ने हमारे उपर पंचायत व्यवस्था थोपने की कोशिश कर रही है।
जिला परिषद् सदस्य अजय एक्का ने कहा कि ‘‘पंचायत राज व्यवस्था’’ से हम आदिवासियों को भारी नुकशान हुआ है। इस व्यवस्था की वजह से बाहरी लोग हमारे क्षेत्र में शासन कर रहे हैं। इसलिए पेसा नियमावली बनाकर हमारी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को मजबूत करना होगा।
इस सम्मेलन को पड़हा राजा एतवा हेरंेज, संयुक्त पड़हा समिति के संयोजक शिबू होरो, अधिवक्ता सुरेश सोय, देवान सुनील होरो, वाल्टर कण्डुलना एवं ज्योति ने भी संबोधित किया। इस सम्मेलन का संचालन मेरी क्लाॅडिया सोरेंगे एवं धन्यवाद ज्ञापन बिनसाय मुंडा ने किया।

‘‘पेसा नियमावली महासम्मेलन’’ में निम्नलिखित पांच प्रस्ताव पारित किया गया:-
- झारखंड राज्य का निर्माण ‘‘अबुआ दिसुम, अबुआ राईज’’ का नारा के आधार पर हुआ है। लेकिन ‘‘पेसा कानून 1996’’ को ‘‘अपवदों और उपांतरणों’’ के साथ उपयुक्त ‘‘पेसा नियमावली’’ के द्वारा राज्य के ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों’’ में विधिवतरूप से लागू करने के बजाय यहां संविधान के अनुच्छेद 243(एम), 244(1) और 254 का गंभीर उल्लंघन करते हुए ‘‘झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001’’ को अधिनियमित कर विगत 24 वर्षों से लागू किया गया है। इसलिए उक्त अधिनियम की धारा – 1(पप) का संशोधन करते हुए इसे राज्य के ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों’’ से निरस्त करते हुए ‘‘गैर अनुसूचित क्षेत्रों’’ तक सीमित किया जाये।
- ‘‘पेसा कानून 1996’’ की धारा-3 में स्पष्ट है कि संविधान के भाग-9 के उपबंधों का ‘‘अपवदों और उपांतरणों’’ के साथ ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों’’ में विस्तार करना है। झारखंड में आदिवासियों की ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ है, जिसके मूल में ‘‘सर्वसम्मति’’ है। लेकिन ‘‘झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001’’ के द्वारा आदिवासियों के उपर ‘‘चुनाव, बहुमत एवं कोरम’’ थोपा गया है। यह ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’, संविधान के ‘‘अनुच्छेद 13(3)(क)’’ एवं ‘‘पेसा कानून 1996’’ की धारा – 3 (अपवदों और उपांतरणों) का गंभीर उल्लंघन है। इसलिए ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों’’ में ‘‘स्थानीय निकाय चुनाव’’ को रद्द करते हुए ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ को ही पूर्णरूप से शासन की ‘‘शक्ति और अधिकार’’ प्रदान की जाये।
- झारखंड में हमारे पूरखों की ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ है, जिसके अंदर ‘‘विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका’’ तीनों पहले से मौजूद है। लेकिन ‘‘झारखंड पंचायत राज अधिनियम 2001’’ के द्वारा ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’ से ‘‘कार्यपालिका’’ की शक्ति को छीनकर इसे ‘‘पंचायत कार्यकारिणी समिति’’ को सौंप दी गई है। यह ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’, संविधान के ‘‘अनुच्छेद 13(3)(क)’’ एवं ‘‘पेसा कानून 1996’’ की धारा – 3 (अपवदों और उपांतरणों) का गंभीर उल्लंघन है। इसलिए ‘‘पारंपरिक ग्रामप्रधान’’ की अघ्यक्षता में आवश्यकता के अनुसार ‘‘पारंपरिक ग्रामसभा’’ की सात, नौ या ग्यारह’ सदस्यों वाली कार्यकारिणी’’ का गठन किया जाय, जिसमें पारंपरिक अगुआ, बुद्धिजीवी एवं शिक्षित व्यक्ति (महिला एवं पुरूष) शामिल हों।
- झारखंड सरकार का ‘‘पंचायती राज विभाग’’ ने विगत तीन वर्षों के अंदर ‘‘पेसा नियमावली’’ का तीन प्रारूप तैयार किया है बावजूद इसके विभाग ‘‘पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था’’, संविधान के ‘‘अनुच्छेद 13(3)(क)’’ एवं ‘‘अपवदों और उपांतरणों’’ के साथ ‘‘पेसा कानून 1996’’ के ‘‘23 प्रावधानों’’ को समाहित करते हुए उपयुक्त ‘‘पेसा नियमावली’’ बनाने में विफल रहा। इसलिए ‘‘पड़हा राजा’’ श्री सनिका भेंगरा की अध्यक्षता में आदिवासी समुदायों के पारंपरिक अगुआ, आंदोलनकारी और बुद्धिजीवियों को मिलाकर एक ‘‘ड््राफटिंग कमेटी’’ का गठन किया जाना चाहिए, जो त्वरित ‘‘पेसा नियमावली’’ का एक सटीक प्रारूप तैयार कर महामहिम राज्यपाल को सौंपे।
- ‘‘पेसा कानून 1996’’ को उपयुक्त ‘‘पेसा नियमावली’’ के द्वारा राज्य के ‘‘अनुसूचित क्षेत्रों’’ में लागू करने तक उक्त क्षेत्र में बालू घाटों की नीलामी, खनिज लीज का आवंटन, भूमि अधिग्रहण, कंपनियों के साथ एमओयू, आदिवासी जमीन की खरीद-बिक्री, देशी-विदेशी शराब की बिक्री, परती जमीन का सर्वे एवं नगरपालिका के द्वारा लिये जाने वाले नीतिगत निर्णयों पर तत्काल रोक लगाया जाये।