झारखंड सहायक आचार्य संघ के प्रदेश अध्यक्ष परिमल कुमार ने झारखंड सरकार और JSSC (झारखंड कर्मचारी चयन आयोग) पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार युवाओं के भविष्य के साथ बार-बार खिलवाड़ कर रही है। आयोग और सरकार की यह मनमानी नीति न केवल युवाओं को हताश कर रही है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था को भी गहरी चोट पहुँचा रही है।

उन्होंने बताया कि आयोग ने कोर्ट में हलफनामा देकर 5008 सीटों पर दस्तावेज़ सत्यापन (DV) कराने की बात कही थी, लेकिन वास्तविकता यह है कि मात्र 2734 अभ्यर्थियों का ही डीवी कराया गया — वह भी केवल विज्ञान और गणित विषय के। और आज जो फाइनल मेरिट लिस्ट प्रकाशित की गई, उसमें भी महज 1661 अभ्यर्थियों के ही नाम जारी किए गए हैं। सवाल यह उठता है कि बाकी सीटों का क्या हुआ?
परिमल कुमार ने कड़े शब्दों में सरकार की निंदा करते हुए कहा: ।
“जब नियुक्ति देना ही नहीं था, तो परीक्षा क्यों ली गई? सफल होने के बावजूद, सीटें रिक्त होने के बावजूद अभ्यर्थियों को नियुक्त नहीं करना सीधा-सीधा धोखा है। यह निर्णय न केवल युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की शिक्षा पर भी प्रहार है।”
इस निर्णय के विरोध में कई अभ्यर्थियों ने अपनी पीड़ा साझा की:
खुशबू कुमारी ने कहा: “सरकार लगातार युवाओं को गुमराह कर रही है। नीयत में खोट साफ़ झलकती है।”
रजत कुमार महतो बोले: “हर बार झूठे वादों से बहलाने की कोशिश की जाती है। यह ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’ दिखाने जैसी राजनीति है।”
बैजनाथ महतो ने सरकार से सीधा सवाल करते हुए कहा: “जब नियुक्ति देना ही नहीं है, तो सीटें बचाकर क्या सरकार अपने घर सजाएगी?”
मदन उरांव ने अफसोस जताते हुए कहा: “झारखंड में शिक्षा और शिक्षक दोनों को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर किया जा रहा है। यदि नियुक्ति नहीं देना है तो ऐसी प्रक्रियाएं क्यों चलाई जाती हैं?”
राजीव कुमार, जो वर्षों से इस प्रक्रिया से जुड़े हैं, ने दो टूक कहा:

अगर झारखंड की शिक्षा को गंभीरता से लिया जाता, तो नियुक्तियों में यह मज़ाक नहीं होता। सरकारी अनदेखी का खामियाज़ा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।”
प्रदेश अध्यक्ष परिमल कुमार ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि जल्द ही रिक्त सीटों पर न्यायोचित तरीके से नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं की गई, तो राज्यव्यापी आंदोलन छेड़ा जाएगा। उन्होंने साफ किया कि यह केवल शिक्षकों की नहीं, बल्कि पूरे झारखंड की शिक्षा व्यवस्था और बच्चों के भविष्य की लड़ाई है।