केंद्रीय अध्यक्ष सुशील उराँव ने जनजातिय/आदिवासियों के संवैधानीक संरक्षक एवं झारखण्ड के सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति महामहिम राज्यपाल के संज्ञान में लाते हुए कहा की जनजातीय भाषा एवं संस्कृति को संरक्षित करने के लिए राँची विश्वविद्यालयों में 1974 ई० से ही पठन-पाठन प्रारंभ की गई किन्तु विश्वविद्यालय प्रशासन के ढूलमूल रवैया के कारण उराँव/कुड़ूख़ ,संथाली ,मुण्डारी,हो,खड़ीया भाषा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है ! इन जनजातिय भाषा के लिऐ कोई एक प्रशनल क्लास रूम तक नहीं है ! साथ ही 4 माँगे ।

- झारखण्ड के 5वीं अनुसूचित क्षेत्रों के सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालय में अनिवार्य रूप से जनजातिय भाषा उराँव/कुड़ूख विभाग,मुण्डारी विभाग,हो विभाग,संथाली विभाग तथा खड़ीया विभाग के लिए स्नातक और स्नातोकोतर के लिये उचित क्लास रूम के साथ -साथ लाईब्रेरी,हर विभाग का अपना म्यूजियम तथा एक धुमकुड़ीया की व्यवस्था के साथ वल्ड क्लास का नया भवन निर्माण कराया जाय !
- उराँव/कुड़ूख भाषा विभाग,मुण्डारी भाषा विभाग,हो भाषा विभाग ,संथाली भाषा विभाग, तथा खड़ीया भाषा विभाग में स्नातक और स्नातोकोतर में यू०जी०सी० गाईडलाईन को अनुशरण करते हुए शिक्षकों एवं गैरशिक्षकों की नियुक्ति किया जाय !
- झारखण्ड के सभी विश्वविद्यालय / महाविद्यालय में झारखण्ड सरकार द्वारा घोषित 26 प्रतिशत आरक्षण रोस्टर के आधार पर अनूसूचित जनजाति/को वि०सी०,रजिस्ट्रार, डि०एस०डब्लू०,प्रधानाचर्य , विभागाध्यक्ष, शिक्षक एवं गैरशिक्षक का बहाल किया जाय!
- झारखण्ड के सभी विश्वविद्यालय एवं विद्यालयों में जनजातिय भाषा(उराँव/कुड़ूख, संथाली, मुण्डारी,हो,खड़ीया )के सिलेबस में उनके भाषा लिपी का एक पेपर भी स्नातक तथा स्नातोकोतर (उराँव /कुड़ूख़ भाषा लिपी – तोलोंग सिकी , संथाली भाषा लिपी – ओलचिकी व अन्य भाषा लिपी) में अनिवार्य रूप से लागू किया जाय तथा भाषा पर शोध और प्रसार की समुचित व्यवस्था की जाय ।
- महामहिम राज्यपाल ने कहा की उपरोक्त विषय को गंभीरता से लेंगे और उचीत कारवाई करने का अस्वाशन दिये ! प्रतिनिधि मंडल में केन्द्रीय मिडिया प्रभारी सुमित उराँव,राँची विश्वविद्यालय अध्यक्ष मनोज उराँव, राँची विश्वविद्यालय अध्यक्ष राजू कु० उराँव तथा डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय अध्यक्ष विवेक तिर्की शामिल थे।